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द्वितीय सत्र का विषय ‘हिंदी साहित्य को जम्मू-कश्मीर की देन’ है, जिसकी अध्यक्षता प्रख्यात डोगरी एवं हिंदी साहित्यकार पद्मश्री डॉ. शिव निर्मोही जी अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि जम्मू-कश्मीर में 16वीं शताब्दी से ही हिंदी साहित्य प्राप्त होने लगता है। इन्होंने जम्मू-कश्मीर के लेखकों की रचनाओं का विश्वविद्यालय में संग्रहालय बनाने का सुझाव दिया। मुख्य वक्ता प्रख्यात हिंदी साहित्यकार चंद्रकांता जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि” हमें खुशी है कि कश्मीर फाइल्स जैसी फ़िल्म बनी क्योंकि कि विस्थापन का दर्द तो लोगों के सामने आना ही चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि विस्थापन पर लिखने के लिए विस्थापित होना कोई जरूरी नहीं है।